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नमन करूँ मैं इस धरती माँ को,
जिसने मुझको आधार दिया,
पल पल मर कर जीने का,
सपना ये साकार किया !
हिम शिखर के चरणों से मैं,
दुःख मिटाने निकला था,
किसी ने रोका मुझे भंवर में,
कोई प्यासा दूर खड़ा था !
कभी आँखों से टपका मैं,
कभी बादल बनकर बरसा हूँ,
कभी सिमट कर इस माटी में,
नदी नालों में बहता हूँ !
कब कहाँ किसके काम आऊँ,
मैं कहाँ इतना ज्ञानी हूँ !
सब के तन मिटे इस माटी में,
मैं तो फिर भी पानी हूँ ! – रचना – राजेन्द्र सिंह कुँवर ‘फरियादी’
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